
बिहार में चुनाव आयोग के स्पेशल इंटेंसिव रिविज़न (SIR) पर सियासत गरमा गई है। एक ओर जहां आयोग वोटर लिस्ट की सफाई में जुटा है, वहीं राजनीतिक दल इसे “राजनीतिक डिटॉक्स या लोकतांत्रिक डिस्टर्बेंस” मान रहे हैं। चिराग पासवान ने इस पर सीधा सवाल उठाया कि “जो मरे हुए हैं, वो वोटर बने हैं, और जो जिंदा हैं, उन्हें साबित करना पड़ेगा कि वो वाकई जिंदा हैं?”
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चिराग का कटाक्ष: ‘मृत आत्माओं’ की वोटिंग से परेशान लोकतंत्र
चिराग पासवान ने कहा, “दशकों पहले जिनकी मृत्यु हो चुकी है, उनके नाम अब भी वोटर लिस्ट में हैं।”
इसका मतलब साफ है – बिहार में वोट देने के लिए जिंदा रहना ज़रूरी नहीं, बस पुराने रिकॉर्ड में बने रहिए!
और जो नई पीढ़ी वोट देना चाहती है, उसे अपने जन्म प्रमाण पत्र की पूरी थ्योरी सबमिट करनी होगी।
चुनाव आयोग की लिस्ट: दस्तावेज़ जमा करो, लेकिन आधार नहीं चलेगा!
एसआईआर के तहत आयोग ने ऐसे 11 दस्तावेज़ तय किए हैं जिनसे नागरिकता और उम्र साबित की जा सके। लेकिन हैरानी की बात ये कि आधार कार्ड, पैन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस जैसे सरकारी पहचान पत्र मान्य नहीं हैं!
अब बिहार के नौजवान सोच रहे हैं:
“तो फिर स्कूल में दिए गए टीसी और चाय की दुकान की रसीद ले आएं क्या?”
तेजस्वी यादव का हमला: ‘59% युवा अब गवाही देंगे कि वो भारतीय हैं’
तेजस्वी यादव ने इस प्रक्रिया को “लोकतंत्र की नींव पर हमला” करार दिया। उन्होंने कहा कि बिहार के 59% मतदाता 40 साल या उससे कम उम्र के हैं, यानी लगभग 4.76 करोड़ युवाओं को ‘पुनर्जन्म’ प्रमाण पत्र लाना होगा कि वे वाकई भारत के ही हैं और वोट देने के लायक हैं।
भ्रम, दमन और डिजिटल असमंजस
तेजस्वी बोले कि यह पूरी प्रक्रिया भ्रम और अनिश्चितता से भरी हुई है।
“SIR का मतलब अब Special Identity Rejection हो गया है,” तेजस्वी ने तंज कसा।
सरकार तो कह रही है ये तो बस क्लीनअप है, लेकिन विपक्ष को इसमें ‘डिलीट फॉर ऑल’ की साजिश नज़र आ रही है।
जनता की बुद्धि पर ट्रस्ट नहीं, दस्तावेज़ों पर डाउट ज़रूरी
पूरा मुद्दा अब इस बात पर टिक गया है कि नागरिकों की पहचान का मापदंड क्या है – आधार कार्ड, जो सरकार खुद हर काम के लिए जरूरी मानती है, या कक्षा 8 की मार्कशीट जो 2007 की बारिश में गल गई थी?
बिहार में वोट देने से पहले ‘आप कौन हैं’, ये साबित करना पड़ेगा — और अगर आप सच में बिहार में रहते हैं, तो यह काम आसान नहीं होगा।
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